Thursday, October 17, 2013

यादों के सहारे बचत की बातें......



12 वी दर्जे में अर्थशास्त्र की किताब में पढ़ा था की ब्याज बचत का पुरस्कार है उस वक़्त केवल परीक्षा के लिहाज़ से केवल परिभाषा याद कर ली थी उस वक़्त इस परिभाषा में छिपी नसीहत को नही समझ पाया था और आज भी बचत के मामले में एकदम से निबट बुद्धू इंसान हूँ कहने को तो दो बैंक अकाउंट है लेकिन दोनों में जिस दिन मुद्रा आती है बेचारी उसके एकाध घंटे बाद ही एटीएम के हलक से मैं निगलवा लेता हूँ हाँ बस काम चल रहा है जैसे तैसे इसलिए सोचता नहीं हूँ सच तो यह भी है कि अभी आमदनी इतनी है भी नहीं कि बचत के रूप में इन्वेस्ट कर सकूँ अभी तो गाँव की एक कहावत के हिसाब से 'गेल गल्ला गेल पल्ला' (तुरंत आमंदनी और तुरंत खर्च ) करके जिंदगी चल रही है कभी कभी कुछ भाई-बंधू और दोस्त सलाह देते है कि कम से कम एक मेडिक्लैम पालिसी तो ले ही लो क्योंकि बुरा वक़्त बता कर नहीं आता है उस वक्त उनकी बात ठीक लगती है लेकिन बाद में सायास भूल जाता हूँ. आज बचत पुराण बांचने की एक वजह और भी है आज मुझे अपने माँ (दादी जी ) की एक आदत याद आ रही थी वैसे तो हम गाँव के बड़े जमीदार रहे है लेकिन कभी उस किस्म साहूकार कभी नहीं रहे कि हमारा पैसा गाँव में ब्याज पर चलता हो बस अपना काम चलता रहा है वजह एक यह भी थी कि मेरे पिताजी हद दर्जे के खर्चीले इंसान रहे है उनकी इस आदत से बहुत से लोगो को प्रश्रय मिलता रहा है....मेरी माँ (दादी जी ) को हमने बचपन से छोटी छोटी बचत करते देखा है उनके पास अनुभव था एक प्रतिबद्धता थी कि हमे आत्मनिर्भर बनाना है और हमे इस भाव से बड़ा करना है कि कभी अपनी पैतृक संपत्ति पर अभिमान नही करना है उन्होंने हमने यह सिखाया कि खुद के श्रम से अर्जित मुद्रा पर ही हमारा अधिकार होता है हम उसे अपने मन के मुताबिक़ खर्च कर सके उनकी मान्यता रही है कि पैतृक संपत्ति को लेकर हमारी दो ही जिम्मेदारियां है एक तो वह सुरक्षित रहे दूसरा उसको हम अपनी अगली पीढ़ी को यथारूप में स्थानांतरित कर सके.
मैं जब शायद पांचवी पढता था तब उन्होंने मेरे नाम से 25 रूपये महीने की गाँव के डाकघर में आरडी शुरू करवाई थी मेरी ही नहीं मेरे बाकि भाई बहनों के नाम से भी ही उन्होंने यही खाता खुलवाया था...वो हर महीने जमा करती रहती है और हमे याद भी नहीं था कि हमारे नाम से ऐसे कोई खाते भी है. वो साल दर साल जमा करती रही और जब वो राशि दो हजार हो गयी फिर उन्होंने उसके हमारे नाम से किसान विकास पत्र खरीद लिए बाद में हर पांच साल में वो रकम दुगनी होने पर उसको बदलवा देती थी...उन्होंने हमे भी नहीं बताया था कि ऐसी कोई बचत हमारे नाम से हो रही है...फिर एक दिन उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा कि ये मैंने तुम सब के नाम थोड़ी सी बचत की है अब ये कागज़ तुम सब अपने अपने पास रखो...और जब जीवन में ऐसी भीड़ आ पड़े कि कंही से पैसे न मिल रहे हो और बेहद वाजिब ढंग से तुम्हे पैसो कि सख्त जरुरत हो तब इनको तुडवा कर अपना काम चला लेना ये पैसा तुम्हारे तब काम आएगा....उनके ये वचन किसी आशीर्वाद की तरह से एकदम से सही सच हुए आप यकीन नहीं करेंगे की एक वक्त मुझ पर ऐसा ही आन पड़ा था की कही से भी पैसा नहीं मिल पा रहा था और मुझे पैसो की सख्त जरुरत थी तब मुझे अपनी माँ के दिए किसान विकास पत्र की याद आयी और वो 25 रूपए महीने की मासिक बचत से बने किसान विकास पत्र ने मेरी पूरे 15000 की मदद की....और मेरे बड़े छोटे भाई-बहन के भी ऐसे ही वक्त में वो पैसा काम आया....तब मुझे एहसास हुआ की घर के बड़े बुजुर्ग वास्तव में कितने दूरदर्शी होते हैं और वो धन की उपयोगिता हम से बेहतर समझते थे क्योंकि उन्होंने अभाव देखा होता था... आज जब हम बचत के नाम पर सोचते है कि क्यों अपनी जरूरतों का गला घोंटा जाए ऐसे में उस दौर के लोग याद आते है जो अपने वर्तमान को संघर्ष की चक्की में पीस कर हमारा भविष्य सुरक्षित कर रहे थे.

Wednesday, October 16, 2013

मुसाफिर और अमीर कनबतियां....




दो दिन पहले अचानक गाजियाबाद जाना पडा छोटे भाई को डेंगू का डंक लगा है मै घर से निकला और सिंहद्वार (जहाँ से दिल्ली-गाजियाबाद की बस मिलती है) पर बस की प्रतिक्षा करने लगा एकाध बस आयी भी लेकिन उनकी हालत देखकर बैठने की हिम्मत न हुई है मेरे दो मन हो रहे थे कि क्या तो वापिस घर चला जाऊँ और ट्रेन मे रिजर्वेशन होने पर जाने पर विचार करुँ या फिर किसी कार मे लिफ्ट मिल जाएं इस उधेडबुन में मन ही मन संकल्प करने लगा कि कार मे ही जाना है....इसी क्रम मे एक इनोवा कार आती दिखी तो मैने संकोच के साथ हाथ दे दिया उसने थोडी दूर जाकर गाडी रोक दी सामने की सीट पर एक सफारी सूट पहने लाला टाईप का इंसान बैठा था रुकते ही बोला कहाँ जाना है मैने कहा दिल्ली फिर उसने पूछा कि भाडा कितना दोगे मैने कहा 240 हालांकि बाद वापसी मे पता चला कि गाजियाबाद-हरिद्वार का बस का किराया 176 रुपये है...खैर नई इनोवा कार मे एसी में यात्रा करने की एवज़ मे मुझे 240 भी ज्यादा नही लगे।
कार मे बैठने के बाद मेरे अनुमान तंत्र ने काम करना शुरु कर दिया पहले मुझे लगा कि आगे की सीट पर बैठा शख्स गुजराती है शायद वाणिक बुद्धि के चलते लालच में मुझे बैठा भी लिया जब तक हमारे बीच मे मौन रहा तब तक रहस्य बना रहा उन्होने एक बार पूछा कि आप हरिद्वार मे क्या करते है मैने बता दिया कि एक विवि मे मास्टरी करता हूँ...गाजियाबाद तक मै प्राय:चुप रहा या एकाध अपने फोन रिसीव किए लेकिन आगे की सीट पर बैठे शख्स और ड्राईवर में यदा-कदा बात होती रही उनकी बातों मे मैने पहले तो कोई रुचि प्रदर्शित नही की लेकिन बाद मे मै खुद ब खुद उनकी बातचीत मे दिलचस्पी लेने लगा वजह साफ थी उनकी बातों में एक खास किस्म की दूनिया का जिक्र हो रहा था जो मेरे लिए अपरिहार्य किस्म की थी या यूँ कहिए कि अभिजात्य किस्म के लोगो की बतकही में मध्यमवर्गीय मन की रुचि पैदा हो जाना स्वाभाविक ही थी।
पहली बात तो मै यहाँ गलत हुआ कि आगे की सीट पर बैठा गुजराती व्यापारी है वह उस कार का मालिक नही था बल्कि वह कार के मालिक का वफादार सेवक (पीए टाईप ) था उस इनोवा कार का मालिक कोई मिलेनियर/बिलेनियर किस्म उद्योगपति था जो देहरादून में अपने बिजनेस के सिलसिले में आता-जाता रहता था वह भी प्लाईट से  कार तो उसके सेवक ही ले जाते है दिल्ली से देहरादून ताकि उसका जरुरी सामान ले जाया सके।
आगे की सीट पर बैठे पीए टाईप के शख्स और कार ड्राईवर की बातों से अमीर लोगो की दूनिया की कुछ रोचक बातें सुनने को मिली उसका सारांश इस प्रकार है---
1.      वो दोनो लोग किसी मिलेनियर/बिलेनियर किस्म के उद्योगपति के माहताहत काम करेंगे वाले कारिन्दे थे...उनके मालिक का बिजनेस आस्ट्रेलिया से लेकर स्पेन तक फैला हुआ है स्पेन की महारानी के साथ उनके व्यापारिक सम्बंध है वो अक्सर देश से बाहर ही रहते है। साहब अक्सर विदेश मे रहते है।
2.      उस बिजनेसमैने के बेटे ने सातवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उसकी पत्नि उसकी जासूसी करती है उसे सन्देह था कि उसके किसी अन्य महिला से सम्बंध है वो उसके दोस्तों से पूछताछ करती थी कि यह ऑफिस न जाकर कहाँ घूमता है यह बात उसको नागवार गुजरी और उसने आत्महत्या कर ली...हालांकि उसके किसी हिमाचल की महिला से विवाहेत्तर सम्बंध थे यह बात पीए साहब ने बताई।
3.      बिजनेसमैने की पत्नि भी तुनकमिज़ाज़ ‘बुढिया’ है यह बात ड्राईवर ने बताई उसने बताया कि मैडम के ड्राईवर ने उसको बताया कि एक बार वह घर से नाराज़ होकर आधी रात को एयरपोर्ट चली गई थी।
4.      उनके साहब के पास प्राडो,ओडी,बीएमडब्ल्य़ू और मर्सडिज़ कारें है साहब को स्पीड से प्यार है यमुना एक्सप्रेस हाईवे पर प्राडो कार 240 किमी/घंटा ही दौड पायी इसलिए इससे नाखुश होकर साहब ने उसी दिन उसको बेचने का ऐलान कर दिया था फिर 1 करोड 56 लाख की ओडी विदेश से मंगवाई।
5.      बिहार मे किसी कार्यक्रम में वहाँ के एक मंत्री के साथ उनके साहब गए थे और मंत्री ने साहब की प्राडो कार मे ही बैठने की इच्छा व्यक्त की इसके बाद मंत्री और साहब को मिली पुलिस एस्कोर्ट पीछे छूट गई क्योंकि उनके पास केवल महिन्दा की जीप था और साहब अपनी प्राडो को दौडा रहे थे।
6.      साहब के यहाँ मंत्री/संत्री का आना जाना लगा रहता है साहब के रिश्तेदार भी रसूखदार लोग कोई सुप्रीमकोर्ट का सीनियर वकील है तो कोई किसी राज्य का एडवोकेट जनरल।
7.      साहब का देहरादून/मसूरी में कोई अभिजात्य किस्म का स्कूल भी है या फिर उनका कोई बच्चा पढता है (जैसा बातों से अनुमान लगा )
8.      साहब दरियादिल भी है अपनी किसी परिचित महिला के बेटो की शादी मे उन्होने उनकी बारात अपनी मर्सडिज़ गाडी मे निकलवाई थी।

..तो साहब इन सब बतकही के बीच मै गाजियाबाद पहूंच गया है बाहर से चमकीली दिखने वाली अमीरों की दूनिया मे भी काफी झोल होते है मुझे तब बशीर बद्र साहब का एक शे’र याद आ रहा था...
कुछ बडे लोगो की मरहूमियाँ न पूछ के बस
गरीब होने का अहसास अब नही होता....
हाँ एक बात मानवीय स्वभाव की जरुर लगी कि अमीर लोगो के सेवक भी भले ही हाई प्रोफाईल दिखते हो लेकिन उनके मन का लालच उन्हे हमेशा प्रभावित कर ही देता है तभी तो मेरे जैसे मुसाफिर को बडे लोगो की कार मे लिफ्ट मिल जाती है और आप सभी को सुनने को ऐसे अंजान किस्म की बतकही...।