Wednesday, October 16, 2013

मुसाफिर और अमीर कनबतियां....




दो दिन पहले अचानक गाजियाबाद जाना पडा छोटे भाई को डेंगू का डंक लगा है मै घर से निकला और सिंहद्वार (जहाँ से दिल्ली-गाजियाबाद की बस मिलती है) पर बस की प्रतिक्षा करने लगा एकाध बस आयी भी लेकिन उनकी हालत देखकर बैठने की हिम्मत न हुई है मेरे दो मन हो रहे थे कि क्या तो वापिस घर चला जाऊँ और ट्रेन मे रिजर्वेशन होने पर जाने पर विचार करुँ या फिर किसी कार मे लिफ्ट मिल जाएं इस उधेडबुन में मन ही मन संकल्प करने लगा कि कार मे ही जाना है....इसी क्रम मे एक इनोवा कार आती दिखी तो मैने संकोच के साथ हाथ दे दिया उसने थोडी दूर जाकर गाडी रोक दी सामने की सीट पर एक सफारी सूट पहने लाला टाईप का इंसान बैठा था रुकते ही बोला कहाँ जाना है मैने कहा दिल्ली फिर उसने पूछा कि भाडा कितना दोगे मैने कहा 240 हालांकि बाद वापसी मे पता चला कि गाजियाबाद-हरिद्वार का बस का किराया 176 रुपये है...खैर नई इनोवा कार मे एसी में यात्रा करने की एवज़ मे मुझे 240 भी ज्यादा नही लगे।
कार मे बैठने के बाद मेरे अनुमान तंत्र ने काम करना शुरु कर दिया पहले मुझे लगा कि आगे की सीट पर बैठा शख्स गुजराती है शायद वाणिक बुद्धि के चलते लालच में मुझे बैठा भी लिया जब तक हमारे बीच मे मौन रहा तब तक रहस्य बना रहा उन्होने एक बार पूछा कि आप हरिद्वार मे क्या करते है मैने बता दिया कि एक विवि मे मास्टरी करता हूँ...गाजियाबाद तक मै प्राय:चुप रहा या एकाध अपने फोन रिसीव किए लेकिन आगे की सीट पर बैठे शख्स और ड्राईवर में यदा-कदा बात होती रही उनकी बातों मे मैने पहले तो कोई रुचि प्रदर्शित नही की लेकिन बाद मे मै खुद ब खुद उनकी बातचीत मे दिलचस्पी लेने लगा वजह साफ थी उनकी बातों में एक खास किस्म की दूनिया का जिक्र हो रहा था जो मेरे लिए अपरिहार्य किस्म की थी या यूँ कहिए कि अभिजात्य किस्म के लोगो की बतकही में मध्यमवर्गीय मन की रुचि पैदा हो जाना स्वाभाविक ही थी।
पहली बात तो मै यहाँ गलत हुआ कि आगे की सीट पर बैठा गुजराती व्यापारी है वह उस कार का मालिक नही था बल्कि वह कार के मालिक का वफादार सेवक (पीए टाईप ) था उस इनोवा कार का मालिक कोई मिलेनियर/बिलेनियर किस्म उद्योगपति था जो देहरादून में अपने बिजनेस के सिलसिले में आता-जाता रहता था वह भी प्लाईट से  कार तो उसके सेवक ही ले जाते है दिल्ली से देहरादून ताकि उसका जरुरी सामान ले जाया सके।
आगे की सीट पर बैठे पीए टाईप के शख्स और कार ड्राईवर की बातों से अमीर लोगो की दूनिया की कुछ रोचक बातें सुनने को मिली उसका सारांश इस प्रकार है---
1.      वो दोनो लोग किसी मिलेनियर/बिलेनियर किस्म के उद्योगपति के माहताहत काम करेंगे वाले कारिन्दे थे...उनके मालिक का बिजनेस आस्ट्रेलिया से लेकर स्पेन तक फैला हुआ है स्पेन की महारानी के साथ उनके व्यापारिक सम्बंध है वो अक्सर देश से बाहर ही रहते है। साहब अक्सर विदेश मे रहते है।
2.      उस बिजनेसमैने के बेटे ने सातवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उसकी पत्नि उसकी जासूसी करती है उसे सन्देह था कि उसके किसी अन्य महिला से सम्बंध है वो उसके दोस्तों से पूछताछ करती थी कि यह ऑफिस न जाकर कहाँ घूमता है यह बात उसको नागवार गुजरी और उसने आत्महत्या कर ली...हालांकि उसके किसी हिमाचल की महिला से विवाहेत्तर सम्बंध थे यह बात पीए साहब ने बताई।
3.      बिजनेसमैने की पत्नि भी तुनकमिज़ाज़ ‘बुढिया’ है यह बात ड्राईवर ने बताई उसने बताया कि मैडम के ड्राईवर ने उसको बताया कि एक बार वह घर से नाराज़ होकर आधी रात को एयरपोर्ट चली गई थी।
4.      उनके साहब के पास प्राडो,ओडी,बीएमडब्ल्य़ू और मर्सडिज़ कारें है साहब को स्पीड से प्यार है यमुना एक्सप्रेस हाईवे पर प्राडो कार 240 किमी/घंटा ही दौड पायी इसलिए इससे नाखुश होकर साहब ने उसी दिन उसको बेचने का ऐलान कर दिया था फिर 1 करोड 56 लाख की ओडी विदेश से मंगवाई।
5.      बिहार मे किसी कार्यक्रम में वहाँ के एक मंत्री के साथ उनके साहब गए थे और मंत्री ने साहब की प्राडो कार मे ही बैठने की इच्छा व्यक्त की इसके बाद मंत्री और साहब को मिली पुलिस एस्कोर्ट पीछे छूट गई क्योंकि उनके पास केवल महिन्दा की जीप था और साहब अपनी प्राडो को दौडा रहे थे।
6.      साहब के यहाँ मंत्री/संत्री का आना जाना लगा रहता है साहब के रिश्तेदार भी रसूखदार लोग कोई सुप्रीमकोर्ट का सीनियर वकील है तो कोई किसी राज्य का एडवोकेट जनरल।
7.      साहब का देहरादून/मसूरी में कोई अभिजात्य किस्म का स्कूल भी है या फिर उनका कोई बच्चा पढता है (जैसा बातों से अनुमान लगा )
8.      साहब दरियादिल भी है अपनी किसी परिचित महिला के बेटो की शादी मे उन्होने उनकी बारात अपनी मर्सडिज़ गाडी मे निकलवाई थी।

..तो साहब इन सब बतकही के बीच मै गाजियाबाद पहूंच गया है बाहर से चमकीली दिखने वाली अमीरों की दूनिया मे भी काफी झोल होते है मुझे तब बशीर बद्र साहब का एक शे’र याद आ रहा था...
कुछ बडे लोगो की मरहूमियाँ न पूछ के बस
गरीब होने का अहसास अब नही होता....
हाँ एक बात मानवीय स्वभाव की जरुर लगी कि अमीर लोगो के सेवक भी भले ही हाई प्रोफाईल दिखते हो लेकिन उनके मन का लालच उन्हे हमेशा प्रभावित कर ही देता है तभी तो मेरे जैसे मुसाफिर को बडे लोगो की कार मे लिफ्ट मिल जाती है और आप सभी को सुनने को ऐसे अंजान किस्म की बतकही...। 

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