Friday, October 1, 2010

नन्ही परी

कल रात लगभग नौ बजे के आसपास की बात है जब योगी का फोन आया और उसने अपने यहाँ एक नन्ही बेटी होने की सूचना मुझे दी...मन प्रसन्नचित्त हो गया सूचना पाकर खुद के वहाँ न होने का जो मलाल हो रहा था वो भी लगभग समाप्त सा ही हो गया क्योंकि अब एक वजह बन गई थी उसके पास जाने की...मैने योगी हो बधाईयां दी और अपनी पत्नि को सूचना वह भी खुश हुई नार्मल डिलीवरी की बात सुनकर फिर यह योगी जी की पहली संतान है सो ज्यादा खुशी होना स्वाभाविक ही है। वैसे तो आज हमें उस नये मेहमान को देखने के लिए अस्पताल जाना था और इस सूचना पर मेरा बेटा राहूल सुबह से ही उत्साह के साथ घुम रहा था अपना काला चश्मा लगाए हुए लेकिन आज उस कन्या के मेडिकल परीक्षण हेतु कुछ टेस्ट आदि होने थे जिसमे व्यस्त रहनें की सूचना योगी के माध्यम से मिल गई थी फिर कल भाभी जी की भी छूट्टी हो जाएगी अस्पताल से सो कार्यक्रम यह बना है कि कल योगी जी के घर पर ही जाकर नन्हें मेहमान को आशीर्वाद दिया जाएगा,उसके लिए एक बढिया गिफ्ट मै आज ही खरीद लाया हूं...।
आज का दिन कुछ खास नही रहा बस यूं ही अवधुत और औघड बना पडा रहा दिन मे एक बार पत्नि की उदासी से खिन्न होकर बडबडाता हुआ बाहर चला गया लेकिन जाऊं तो जाऊं कहाँ?ये भाव लेकर जल्दी ही एटीएम के वातानूकूलित कक्ष मे मस्तिष्क को ठंडा करके वापस लौट आया थोडी देर बच्चे के साथ गपियाया फिर उसके बाद खाना कर सो गया आजकल दिन मे सोने की बडी बुरी बीमारी लग गई है फिर रात मे नींद नही आती। दिन मे सोने का एक नुकसान और है बडी अप्रिय मनस्थिति बनी रहती सो कर उठने के बहुत देर बाद तक खासकर मुझे नार्मल होने मे बहुत वक्त लगता है शायद किसी दूसरी दूनिया का हिस्सा बन जाता है मन और वो इस औपचारिक दूनिया मे लौटने पर अवसादित हो उठता है।
फोन आजकल मृतप्राय ही पडा रहता है ये पहले सी पता है कि मेरी हमेशा आउटगोईंग ज्यादा होती थी इनकमिंग़ तो हमेशा से कम रही है...इससे मेरे सम्बन्धो के संसार की एक झलक भी मिलती है।
पत्नि से आजकल अबोला टाईप का कुछ चल रहा है मतलब इसे आप कम्यूनिकेशन गैप कह सकते है वो मुझे कैदी की तरह खाना परोस देती है और मै अपने आप मे लीन यूं ही बेतरतीब पडा रहता हूं वो भी उदास अलग कमरे मे पडी रहती है या टी.वी. देखती रहती है उसकी नाराज़गी कि एक वजह यह भी है कि परसों बच्चे को डांटने के प्रकरण थोडा ज्यादा टाईट होकर पत्नि को डांट दिया जिसे वह दिल से लगाए बैठी अब तक....।
ऐसा पहले भी हुआ है लाईफ है चलता रहता है ये सब आप सभी को एक साथ खुश नही देख सकते है। मेरे जैसे टिपीकल आदमी के साथ कुछ प्राब्लम ज्यादा है आज तक मै किसी को भी खुश नही रख पाया...कोशिस तो बहुत की लेकिन शुन्य ही रहा...।
आज का रोजनामचा बस यही है एक पी.एच.डी.छात्र (अमित शर्मा) का सोमवार को वाईवा है वो अभी अपनी पावर पाईंट प्रेजेटेंशन लेकर आया है मुझे दिखाने के लिए सो अब आप से विदा लेता हूं कल कुछ विशेष रहा तो आपसे चर्चा करुंगा...।
डा.अजीत

3 comments:

  1. बढ़िया संस्मरण ... बधाई...

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  2. डॉ अजीत ,

    आज अपने ब्लॉग पर आपका निमंत्रण पाकर और आपके इस नए ब्लॉग का पता मिलने पर यहाँ तक पहुंची हूँ। आने के बाद पहली पोस्ट पढ़ी, फिर एक एक करके पिछली सभी पोस्ट्स पढ़ीं । बिना किसी मिलावट के , दिल से निकली हुई आपकी हर पोस्ट बेहद इमानदार लगी। यही वजह है , जो पिछली सभी पोस्ट्स पढने को मजबूर हुई।

    इंसान जैसा भी होता है, वो अपनी परिस्थितियों के कारण बन जाता है। और जीवन की विषम परिस्थियों से जूझने के लिए खुद को तैयार कर लेता है। आप जैसे भी हैं अपने आप में अनोखे हैं। लोगों की निगाह से खुद को मत देखिये। मुझे लगता है, आप खुद से बेहद प्यार करते हैं । और यही करना भी चाहिए।

    पति-पत्नी को चाहिए की वो एक-दुसरे को भरपूर स्पेस दें , ताकि सांस लेने की गुंजाइश बनी रहे। इसलिए कुछ दिन यदि औपचारिक भी बीतें तो उसका भी अपना एक अलग ही मज़ा होता है।

    कुछ रिश्ते जो करीब होते हैं , पर कुछ समय के बाद औपचारिकता आ जाए तो भी शोक नहीं करिए। उसे हरी-इच्छा समझ कर स्वीकार कीजिये। किन्हीं कारणों वश ऐसा होता है । ऐसे परिस्थितियों को ह्रदय से स्वीकार करना चाहिए।

    आप अंतर्मुखी हैं, और अंतर्मुखी लोग ऐसे ही होते हैं। वो वहिर्मुखी लोगों से बेहतर और ज्यादा संवेदनशील होते हैं। और इश्वर के ज्यादा करीब होते हैं।

    आपका पहला फ़र्ज़ है ---- " अपने आपको खुश रखना " ----इसलिए वही कीजिये जो दिल कहता है।

    Always listen to your heart.

    Regards,
    Divya
    .

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  3. badhai nanhi padi ke liye ,man ki suno aur karo ye to thik hai ,magar har waqt ye sambhav nahi .sochne ke najriye par bhi nirbhar hota hai

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